केंद्र सरकार ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) को गैर-कानूनी संगठन घोषित करते हुए इसे पांच साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया है। केंद्रीय गृह मंत्री की तरफ से जारी गजट नोटिफिकेश में कहा गया है कि सरकार ने पीएफआई की विध्वंशक गतिविधियों को देखते हुए देशहित में विधिविरुद्ध गतिविधियां (निवारण) अधिनियम, 1967 यानी यूएपीए के सेक्शन 3 के सबसेक्शन 1 के तहत प्राप्त शक्तियों का इस्तेमाल किया है। संबंधित सेक्शन और सब-सेक्शन में कहा गया है कि अगर सरकार को किसी व्यक्ति, संस्था या किसी और एंटिटी के खिलाफ देशविरोधी या आतंकी गतिविधियों में शामिल होने के सबूत मिलें तो वह उस व्यक्ति, संस्था या अन्य एंटिटी पर प्रतिबंध लगा सकती है। केंद्र सरकार ने अपने गजट नोटिफिकेशन में पीएफआई और उसके सहयोगी संगठनों के गुनाहों को भी एक-एक करके गिनाया है.
PFI पर बैन का मुस्लिम संस्था के अलावा बीजेपी ने स्वागत किया है. केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने ट्वीट कर लिखा..’बाय-बाय PFI’ तो वहीं बीजेपी के महासचिव अरुण सिंह ने कहा कि राजस्थान में भी जिस प्रकार कई ज़िलों में दंगा हुआ, उसी समय हम कह रहे थे कि PFI का इसमें हाथ था. कर्नाटक में जब सिद्धारमैया की सरकार थी, उस समय भी 23 से अधिक लोगों की हत्या हुई थी. देश को अखंड रखने के लिए इसपर (PFI) बैन जरूरी था.
वहीं पीएफआई पर बैन का सूफी खानकाह एसोसिएशन ने भी स्वागत किया है. संस्था के अध्यक्ष कौसर हसन मजीदी ने कहा, मुसलमानों को समझना चाहिए कि पीएफआई देश विरोधी था. पीएफआई पर बैन के विरोध में लोगों को कोई प्रदर्शन नहीं करना चाहिए. पिछले कई वर्षों से सूफी खानकाह एसोसिएशन लगातार पीएफआई पर बैन की मांग कर रहा था. उसके बाकायदा इसके लिए अभियान छेड़ा हुआ था.
NIA की अगुआई में विभिन्न राज्यों की पुलिस ने कुल 7 राज्यों से 270 PFI के मेंबर को हिरासत में लिया है. इनमें से 56 यूपी से, 74 कर्नाटक से, 23 असम से, 34 दिल्ली से, 47 महाराष्ट्र से, 21 मध्यप्रदेश से और 15 गुजरात से हैं.
जांच में पता चला है कि फंडिंग के लिए जमाखातों के नाम ये हिंदी या संस्कृत में रखते हैं ताकि सबको लगे कि किसी संघ के या हिंदू संगठन से पैसे आए हैं. पैरवी और घुसपैठ के लिये दलित वकीलों को अपने पैनल पर रखते हैं ताकि दलित मुस्लिम वाला कार्ड खेल सकें. पीएफआई के जाकिर नाइक से भी संबध मिले हैं.