”मां को कुछ लोग घसीटते हुए ले गए। पेड़ से बांधकर पूरी रात पीटा। मां दहाड़ मारकर चीखती रही, चिल्लाती रही। मारते-मारते थक गए तो सुबह भरी पंचायत में गर्म रॉड से दागा। जबरन मैला पिलाया। एक आदमी ने मां की गर्दन काटने के लिए गड़ासा उठा लिया। मां डर गई और चिल्लाकर बोल पड़ी- हां मैं डायन हूं, मैंने ही गांव वालों को खाया है।”

ये कहानी है मुन्नी के माँ की जो मूल रूप से झारखण्ड के दुमका की रहने वाली है जिनकी माँ को गांव वालो ने डायन बता कर मार डाला. देश मे ये सिर्फ पहली ऐसी महिला नही है जिसे गांव वालो ने डायन बता कर मार डाला है बल्कि देश के कोने कोने मे रोज किसी ना किसी महिला को ऐसी प्रताड़ना सहना पड़ता है और उनकी हत्याए हो रही है.
देश मे ऐसी घटनाए आम होती चली जा रही है जिनको सुनने समझने वाला कोई नही इनकी व्यस्था सिर्फ मीडिया की सुर्खियों तक सिमित है.इन्ही प्रथा पर द लिपस्टिक बॉय के निर्देशक अभिनव ठाकुर ला रहे है अपनी अगली फ़िल्म जिसका नाम है बिसाही जिसकी चर्चाए अब बॉलीवुड गलियारों मे तेज हो गई है.
द लिपस्टिक बॉय के निर्देशक अभिनव ठाकुर की अगली फिल्म “बिसाही” की शूटिंग जोरो शोरो से चल रही है, बिसाही फिल्म भारत के कुछ राज्यों में डायन प्रथा के नाम सताई जा रही महिलाओं और उनके परिवार वालों के लिए वरदान साबित हो सकती है। डायन प्रथा से प्रभावित राज्यों में असम, पश्चिम बंगाल, झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश सबसे आगे है।नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार देश में वर्ष 2000 से 2016 के बीच 2500 से अधिक महिलाओं की हत्या डायन या चुड़ैल बताकर कर दी गयी, यानि प्रति वर्ष औसतन 156 हत्याएं। इस क्षेत्र में काम कर रहे अनेक मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के अनुसार यह प्रथा बिहार, गुजरात, राजस्थान, ओडिशा, झारखण्ड और छत्तीसगढ़ में व्यापक तौर है और इसका कारण डायन या चुड़ैल का आतंक नहीं, बल्कि महिलाओं का यौन शोषण और आदिवासी महिलाओं के संपत्ति की संगठित लूट है।
फिल्म बिसाही को पीसविंग प्रोडक्शन के बैनर तले बनाया जा रहा है, जिसके निर्माता नरेंद्र पटेल है। मुख्य भूमिका में रवि साह, पूजा अग्रवाल, राम सुजान सिंह, इंदु प्रसाद और रंजीत रणदिवे नजर आएंगे। रवि साह फिल्म पान सिंह तोमर जैसी बड़ी फिल्मों में अपना अभिनय का लोहा मनवा चुके हैं, वहीं राम सुजान सिंह को दबंग और दबंग 2 जैसी फिल्मों में चौबे जी के किरदार को खूब सराहा था। कहानी के लेखक विश्वदीप ज़ीस्त और निर्देशक अभिनव ठाकुर फिल्म को हिंदी और झारखंड के क्षेत्रीय भाषा में, एक अलग ही अंदाज में पेश कर रहे है।